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जल प्रतीक्षा दीप अविचल / राहुल शिवाय

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जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।

मौन हैं मेरे अधर औ'
असह-पीड़ा, ज्वार मन में,
है समय तम से घिरा यह
ढल चुका रवि है गगन में।
पर मिटा दो यह हताशा
भर हृदय में आस निर्मल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।
 
प्रश्न-झंझावात मन में
मोम - सा गलता हुआ तन,
नेह की चाहत में तपकर
झुलस बैठा है शलभ-मन।
जल हृदय बन दीप-बाती
प्रेम का कर पंथ उज्ज्वल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।

ये भयावह रात काली
इक न इक दिन टलेग़ी,
है अभी जो वेदना वह
स्वतः ही मजबूर होंगी।
पूर्ण करने यह तपस्य़ा
धीर रखकर, रहो निश्चल।
जल प्रतीक्षा दीप अविचल।।