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ना-तैयारी / ज़िन्दा कौल / अग्निशेखर

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जो प्रेम अनन्य करता मुझको
मुझसे भी ज़्यादा
आशा, प्रकाश मेरा वो प्रियतम
चाहता ढूँढ़ता मुझको
है अनादिकाल से बाट जोहता
मीत मेरा

'इस देश में रहो कुछ देर' — कहा उसने —
'इस गेह में रहो निहारते पथ मेरा
विरह में जब खिल आएँ बगिया में
फूल प्रेम के
बाँटना पड़ोस में उनको
फिर तारना तुझको काम मेरा'
है अनादिकाल से बाट जोहता
मीत मेरा

' कोई सींचोगे पौधा नम होगी पृथ्वी
जिसने प्रेम किया किसी को
उसने किया प्रेम मुझे ही
प्रेम का होता उत्सर्जन मुझसे
लौटता वह चौतरफ़ा मुझ तक ही
साध लिया यह सत्य ज्ञानियों ने
और जान गए रहस्य प्रेम का
और निर्देश मेरा '
है अनादिकाल से बाट जोहता
मीत मेरा

रोज़ वह भेजता है मुझे पत्र
रंग-बिरंगे कागज़ों पर बेशुमार
कभी पुष्पभूमि, सरोवर, आकाश तारों से भरा,
कभी नदी कोई,अहरबल* सा प्रपात,
पोषनूल* कोई, तितली या
फूल नरगिस का, कभी
कुलाँचे मारती पीले हिरणों की जोडी,
कभी सुकुमार कोई, सुन्दरी कभी,
विद्वान कोई, सच्चा फकीर
इन्द्रियों के तुरंग पर सवार,
कुछ नहीं जिसके पास,
कहता यह संसार मेरा
है अनादि काल से बाट जोहता
मीत मेरा

रात के अन्तिम पहर जब चान्दनी
भरसक चमकी,
सुगन्ध फूलों ने बिखेरी हवा महकी
चहचहाया पाखी पोषनूल,
गा उठी मैना वन की,
आकाश का संगीत और कल कल वाद्यवृन्द,
पराग लिए मन्द-मन्द बहती स्वर्ग की हवा
ऐसा समा बँधा कि लगा अनाहूत
वह आ गया स्वयं ही
बालसखा मेरा

लाज आई मुझे
और बह गए पसीने इतने
कि तर हो गया बदन
छिप जाऊँ कहीं या
मर जाऊँ चाहा;
बेहतर विरह ही मेरे लिए
मेरी हालत देख
मन उचट न जाए उसका

तन नहीं साफ सुथरा, वस्त्र भी यह गेह भी
तैयारी भी नहीं पूजा-अर्चना की,
फिर वो फूल प्रेम के
जो थे बाँटने मुझे पड़ोसियों में
पिरोने हार थे देखे मुरझाए पड़े
कहाँ बिठाऊँ स्वच्छ सी जगह भी
नहीं, है धूल-धूसरित
और गृहस्थी के कबाड़खाने से घिरा
पूजाघर मेरा
है अनादि काल से बाट जोहता
मीत मेरा

बिना प्रेम की इन्तिहा के
कैसे वह आता अनाहूत
इस तरह पास मेरे
समझ में आया यह भी
उसका एक पत्र ही जाना मैंने
कैसे बिना मुझे तैयार देखे आता
वह मेरा प्रियतम लाज रखने वाला
है अनादि काल से बाट जोहता
मीत मेरा

मूल कश्मीरी भाषा से अनुवाद : अग्निशेखर