भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोइलिया न बोली / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:22, 12 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=तुम्हे सौंपता हूँ / त्रिलोचन }} मंजर ग...)
मंजर गए आम
कोइलिया न बोली
बाटो के अपने
हाथ उठाये
धरती
वसंती -सखी को बुलाये
पडे हैं सब काम
कोइलिया न बोली
पाकर नीम ने
पात गिराए
बात अपत की
हवा फैलाये
कहां गए श्याम
कोइलिया न बोली ।