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शोक की संतान / रामधारी सिंह "दिनकर"
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हृदय छोटा हो,
- तो शोक वहां नहीं समाएगा।
- तो शोक वहां नहीं समाएगा।
और दर्द दस्तक दिये बिना
- दरवाजे से लौट जाएगा।
- दरवाजे से लौट जाएगा।
टीस उसे उठती है,
- जिसका भाग्य खुलता है।
- जिसका भाग्य खुलता है।
वेदना गोद में उठाकर
- सबको निहाल नहीं करती,
- सबको निहाल नहीं करती,
जिसका पुण्य प्रबल होता है,
- वह अपने आसुओं से धुलता है।
- वह अपने आसुओं से धुलता है।
तुम तो नदी की धारा के साथ
- दौड़ रहे हो।
- दौड़ रहे हो।
उस सुख को कैसे समझोगे,
- जो हमें नदी को देखकर मिलता है।
- जो हमें नदी को देखकर मिलता है।
और वह फूल
- तुम्हें कैसे दिखाई देगा,
- तुम्हें कैसे दिखाई देगा,
जो हमारी झिलमिल
- अंधियाली में खिलता है?
- अंधियाली में खिलता है?
हम तुम्हारे लिये महल बनाते हैं
- तुम हमारी कुटिया को
- देखकर जलते हो।
- देखकर जलते हो।
- तुम हमारी कुटिया को
युगों से हमारा तुम्हारा
- यही संबंध रहा है।
- यही संबंध रहा है।
हम रास्ते में फूल बिछाते हैं
- तुम उन्हें मसलते हुए चलते हो।
- तुम उन्हें मसलते हुए चलते हो।
दुनिया में चाहे जो भी निजाम आए,
तुम पानी की बाढ़ में से
- सुखों को छान लोगे।
- सुखों को छान लोगे।
चाहे हिटलर ही
- आसन पर क्यों न बैठ जाए,
- आसन पर क्यों न बैठ जाए,
तुम उसे अपना आराध्य
- मान लोगे।
- मान लोगे।
मगर हम?
- तुम जी रहे हो,
- हम जीने की इच्छा को तोल रहे हैं।
- हम जीने की इच्छा को तोल रहे हैं।
- तुम जी रहे हो,
आयु तेजी से भागी जाती है
और हम अंधेरे में
- जीवन का अर्थ टटोल रहे हैं।
- जीवन का अर्थ टटोल रहे हैं।
असल में हम कवि नहीं,
- शोक की संतान हैं।
- शोक की संतान हैं।
हम गीत नहीं बनाते,
- पंक्तियों में वेदना के
- शिशुओं को जनते हैं।
- शिशुओं को जनते हैं।
- पंक्तियों में वेदना के
झरने का कलकल,
- पत्तों का मर्मर
- पत्तों का मर्मर
और फूलों की गुपचुप आवाज़,
- ये गरीब की आह से बनते हैं।