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झूठ की नदी / विजय बहादुर सिंह

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झूठ की नदी में
डगमग हैं
सच के पाँव

चेहरे
पीले पड़ते जा रहे हैं
मुसाफ़िरों के

मुस्कुरा रहे हैं खेवैये
मार रहे हैं डींग

भरोसा है
उन्हें फिर भी
सम्हल जाएगी नाव

मुसाफिर
बच जाएँगें
भँवर थम जाएगी