भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सवारे-बेसमंद / शहरयार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 31 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार }} ज़मीन जिससे ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़मीन जिससे छुट गई

बाब ज़िन्दगी का जिस पे बन्द है

वो जानता है यह कि वह सवारे-बेसमंद है

मगर वो क्या करे,

कि उसको आसमाँ को जाने वाला रास्ता पसन्द है।


शब्दार्थ :

सवारे-बेसमंद=बिना घोड़े का सवार; बाब=दरवाज़ा