भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़िलहाल -2/ प्रफुल्ल कुमार परवेज़

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 08:48, 3 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रफुल्ल कुमार परवेज़ |संग्रह=संसार की धूप / प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिनके जीने या मरने से
कहीं फ़र्क़ नहीं पड़ता
वे इलाज के लिए
सिविल अस्पताल में
क़तारबद्ध हैं
जिनका कहीं पहुँचना
ज़रूरी नहीं है
वे रेलों में सवार हैं

जिनको होना है
न घर का न घाट का
वे विद्यालयों में दाख़िल हैं

दोपहर जेठ की है
पेड़ बबूल के
छाँव सारी सेठ की है

यह क़रीब-क़रीब
अपने मातम में शरीक लोगों का
फुसफुसाता वार्तालाप है
बेआवाज़ लोगों का
ख़ामोश विलाप है

सड़क सुनसान है
लोकतांत्रिक छूट के तहत
लोग पगडंडियों पर
भटके हुए हैं
आसमान से गिरे थे
फ़िलहाल
खजूर में
अटके हुए हैं