भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता / विपिनकुमार अग्रवाल
Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:42, 4 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: मौसम सा प्यार था अखबार की खबर में बात-सा समय कट गया आंख हैक् कि उ...)
मौसम सा प्यार था अखबार की खबर में बात-सा समय कट गया आंख हैक् कि उठाकर देखा मैंने तो वहां कोई नहीं था सिपाही-सा खड़ा रहा चलती सड़क पर चारों दिशाएं देखीं मैंने घूम-घूमकर किसी को मैंने ढूंढा नहीं कोई नहीं मिला।
विदाई-सा तुम्हारे साथ हूं सिग्नल तक हिलता हुआ हाथ हूं एक झूठ-सा ही मेरा अस्तित्व रहा।
बच्चों के स्कूल में, भरे कॉफी हाउस में जिंदा हूं अभी मैं शोर-गुल सा कभी अगर बैठे-बैठे लगे हाथ तुम्हें सफैद घोड़ों का उड़ता हुआ रथ परियों से घिरा हुआ इधर से गुजर गया जान लेना मैं अपना चलते-चलते आभार प्रकट गर गया।