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युग की गंगा / केदारनाथ अग्रवाल
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कविता अंश
युग की गंगा
पाषाणों पर दोडे़गी ही
लम्बी , ऊंची
सब प्राचीन डुबायेगी ही
नयी बस्तियाँ
शान्ति निकेतन
नव संसार बसायेगी ही