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जुगुनी दीदी का भूत / अर्चना लार्क

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मेरे भूतों की कहानी में
डीहा के बाबा
चबूतरे की अइया थीं
जो ख़ूब खातीं और पानी पीतीं
लोग कहते हैं भूखे-प्यासे मरी थीं ।

ख़सम ने दूसरी बहू लाकर
इसे चरित्रहीन कह घर से निकाल दिया था
ये अइया उन्हीं औरतों पर आतीं
जो अपने ख़सम से झिड़क दी जाती
ये कहतीं — आओ, देखो, इसका व्यभिचार
और ख़ूब हँसती ।

गाँव में औरतों के संसार से अलग
बच्चियों का विकास हो रहा था
कोई लम्बी, कोई छोटी तो कोई काली, गोरी
इनका अलग ही अन्तर्द्वंद्व बना रहता ।

अम्मा के चिढ़ाते ही एक रोज़
जुगुनी दीदी पर भूत आया
और जाने का नाम ही न लेता
उनका भूत कहता — दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की है ये
मैं इससे ब्याह करूँगा ।

जुगुनी दीदी आँखें लाल कर अम्मा को देखतीं और कहतीं —
बात सुन !
है कोई इतना सुन्दर ?
अम्मा डरकर कहती — नहीं .. ई .. ई ...।
    
जुगुनी दीदी ज़ोर से हँसतीं
और फफककर रोतीं
उनके रोने में उन असँख्य औरतों के आँसू शामिल होते
जिन्हें बदसूरत, वाचाल, चरित्रहीन नाम आशिर्वाद की जगह मिले थे
ये हर रोज़ अपने-अपने ईष्ट से मिन्नतें कर हार रही थीं ।

भूत इनका विकल्प था
हर उस परिस्थिति में
जब इनके भीतर चुप्पी का शोर बढ़ता जाता ।