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प्रथम अध्याय / श्वेताश्वतरोपनिषद / मृदुल कीर्ति

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किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाम केन क्व च संप्रतिष्ठा।
अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम् ॥१॥

क्या इस जगत का मूल कारण, ब्रह्म कौन व् हम सभी?
उत्पन्न किससे, किसमें जीते, किसके हैं आधीन भी?
किसकी व्यवस्था के अनंतर, दुःख सुख का विधान है,
कथ कौन संचालक जगत का, कौन ब्रह्म महान है? [ १ ]

कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।
संयोग एषां न त्वात्मभावा-दात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः ॥२॥

कहीं मूल कारण काल को कहीं प्रवृति को कारण कहा,
कहीं कर्म कारण तो कहीं, भवितव्य को माना महा,
पाँचों महाभूतों को कारण, तो कहीं जीवात्मा,
पर मूल कारण और कुछ, जिसे जानता परमात्मा। [ २ ]

ते ध्यानयोगानुगता अपश्यन् देवात्मशक्तिं स्वगुणैर्निगूढाम् ।
यः कारणानि निखिलानि तानि कालात्मयुक्तान्यधितिष्ठत्येकः ॥३॥

वेदज्ञों ने तब ध्यान योग से ब्रह्म का चिंतन किया,
उस आत्म भू अखिलेश ब्रह्म को, जाना जब मंथन किया।
परब्रह्म त्रिगुणात्मक लगे, पर सत्व, रज, तम से परे,
संपूर्ण कारण तत्वों पर, एकमेव ही शासन करे। [ ३ ]

तमेकनेमिं त्रिवृतं षोडशान्तं शतार्धारं विंशतिप्रत्यराभिः।
अष्टकैः षड्भिर्विश्वरूपैकपाशं त्रिमार्गभेदं द्विनिमित्तैकमोहम् ॥४॥

यह विश्व रूप है चक्र उसका , एक नेमि केन्द्र है,
सोलह सिरों व् तीन घेरों, पचास अरों में विकेन्द्र है।
छः अष्टको बहु रूपमय और त्रिगुण आवृत प्रकृति है,
इस विश्व चक्र में सम अरों, अंतःकरण की प्रवृति है। [ ४ ]

पञ्चस्रोतोम्बुं पञ्चयोन्युग्रवक्रां पञ्चप्राणोर्मिं पञ्चबुद्ध्यादिमूलाम् ।
पञ्चावर्तां पञ्चदुःखौघवेगां पञ्चाशद्भेदां पञ्चपर्वामधीमः ॥५॥

यदि विश्व रूप नदी का है, तो स्रोत पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ ,
दुर्गम गति व् प्रवाह अथ, पुनि जन्म मृत्यु की उर्मियाँ।
ज़रा, जन्म, मृत्यु, गर्भ, रोग, के दुःख जीवन विकट है,
अज्ञान, मद, तम, राग, द्वेष ये क्लेश पञ्च विधि प्रकट हैं। [ ५ ]