सारस / रसूल हम्ज़ातव / श्रीविलास सिंह
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि सैनिक, जो कभी
वापस नहीं आए हम तक रक्तरंजित मैदानों से,
बच न पाए युद्धभूमि से और कर न पाए पार नदी को,
लेकिन इसकी जगह
जो बदल गए श्वेत चीख़ते सारसों में ।
और उसी समय से उड़ रहा है वह झुण्ड - संकरी
या चौड़ी, अथवा लम्बी पंक्ति में — और सम्भवतः इसी कारण
अक्सर और आकस्मिक शोक के साथ
हम रुक जाते हैं एकाएक, देखते हुए आकाश की ओर ।
उड़ते हैं त्रिभुजाकार झुण्ड अतिक्रमण करते प्रत्येक सीमा का —
एक दुखी संरचना, सा-रे-गा-मा की श्रेणियाँ,
एक रिक्ति है उनकी खुली पंक्तियों में :
क्या यही है वह स्थान जो उन्होंने आरक्षित रखा है मेरे लिए ।
वह दिन भी आएगा : जब साँझ के बादलों के नीचे
मैं उड़ूँगा,
सारस होंगे मेरे दाहिने, मेरे बाएँ
और उन्हीं जैसी तीखी और तीव्र आवाज़ में,
पुकारूँगा, पुकारूँगा उन्हें जो हैं धरती पर
कि जा चुका हूँ मैं ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह