भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे पास यहाँ / हेनरी मीशॉ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 25 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेनरी मीशॉ |संग्रह= }} <Poem> हमारे पास यहाँ, वह बोली, ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे पास यहाँ,
वह बोली,
केवल एक सूरज मुँह में,
और तनिक देर वास्ते।
हम मलते अपनी आंखें दिनों आगे।
निष्फल लेकिन।
अभेद्य मौसम।
अपने नियत पहर धूप आती केवल।

फिर हमारे पास है करने को चीज़ों की एक दुनिया,
जब तलक रोशनी है वहाँ,
समय हमारे पास बमुश्किल है दरअसल एक दूसरे को दो टुक देखने का।

मुसीबत यह है कि रात पाली है
जब हमें काम करना है,
और हमें, सचमुच करना है:
बौने जन्म लेते हैं लगातार।

अंग्रेज़ी से भाषान्तर : पीयूष दईया
<\Poem>