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दिग्भ्रमित बयार / इला कुमार

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दिग्भ्रमित बयार

उस रात

रचा गया

दूर से दिख सकने वाले दृश्य की

अनगढ़ कल्पना का द्वार

हवा ठक ठक का ती रही

हलकी सी टिकी सांकल की धकेल कर


भीतर घुस आने का साहस वह नहीं जुटा पाई थी सिर्फ़ अपने झनकते स्पर्श से डरती बुझाती रही हमें

आसपास बिखरे सत्यों को स्वीकारने का साहस उस दिग्भ्रमित बयार में नहीं था