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पवाड़ा / तुलसी रमण
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बहुत डर लगता है मित्र
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूं
जब कोई देवदार
औंधे मुंह गिरता ह्ऐ राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
अनगिनत शव
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार
सहम जाते हूं मेरा भाई जब
जुदा रहने की बात करता है बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है और पत्नि करती है प्रार्थना
संभल कर जाने की
यहां तक कि बेटा भी
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है बस अड्डे के बोर्ड पर
लिखा है रहता है
एडस का कोई ईलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून सुनो मित्र! तुम बताओ इतनी चेतावनिओं के बीच जीना
क्या आसान है?