भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 29 मई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: केदारनाथ सिंह Category:कविताएँ Category:केदारनाथ सिंह ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)
रचनाकार: केदारनाथ सिंह
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
इतने दिनों के बाद
वह इस समय ठीक
मेरे सामने है
न कुछ कहना
न सुनना
न पाना
न खोना
सिर्फ़ आंखों के आगे
एक परिचित चेहरे का होना
होना-
इतना ही काफ़ी है
बस इतने से
हल हो जाते हैं
बहुत-से सवाल
बहुत-से शब्दों में
बस इसी से भर आया है लबालब अर्थ
कि वह है
वह है
है
और चकित हूं मैं
कि इतने बरस बाद
और इस कठिन समय में भी
वह बिल्कुल उसी तरह
हंस रही है
और बस
इतना ही काफ़ी है
'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से