भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भय / मोहन साहिल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:36, 19 जनवरी 2009 का अवतरण ("भय / मोहन साहिल" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत डर लगता है मित्र
पहाड़ की कोई पसली जब टूटकर
ढलानो से लुढ़कती चली जाती है
आँखें बंद कर लेता हूँ
जब कोई देवदार
औंधे मुँह गिरता है
राजमार्ग अवरुद्ध हो जाता है
स्क्रीन पर दिखाए जाते हैं
अनगिनत शव
और वाचक उसी मुस्कान के साथ
पढ़ता है दुर्घटना के समाचार

सहम जाते हूँ
मेरा भाई जब
जुदा रहने की बात करता है
बूढ़ी माँ मर जाने को कहती है
और पत्नि करती है प्रार्थना
संभल कर जाने और्
जल्दी लौट आने की
यहाँ तक कि बेटा भी
कैंसर होने से आगाह करता है
बीड़ी न पीने को कहता है
बस-अड्डे के बोर्ड पर
लिखा ही रहता है
एडस का कोई इलाज नहीं
ग्रहण न करें बिना जाँच
किसी का ख़ून
सुनो मित्र!
तुम बताओ
इतनी चेतावनियों के बीच जीना
क्या आसान है?