भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्कूल / मोहन राणा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:46, 28 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा }} पहल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले मुझे क़िताब की जिल्द मिली

फिर एक कॉपी

बस्ते में और कुछ नहीं बचा इतने बरस बाद

घंटी सुनते ही जाग पड़ा

मैदान में कोई नहीं था दसवीं बी में भी कोई नहीं

क्या आज स्कूल की छुट्टी है सोचा मैंने

हवाई जहाज मध्य यूरोप में कहीं था और मैं

कई बरस पहले अपने स्कूल


धरती ने ली सांस

हँसा समुंदर

आकाश खोज में है अनंतता की


बहुत पहले मैंने उकेरा अपना नाम मेज पर

समय की त्वचा के नीचे धूमिल

कोई तारीख़


कोई दोपहर उड़ा लाती हवा के साथ

किसी बात की जड़

मैं वह दीवार हूँ

जिसकी दरार में उगा है वह पीपल


5.9.2006