भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ तो कहो न / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
218.248.67.35 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:39, 12 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} Category:कविता <poem> कुछ तो कहो...)
कुछ तो कहो न
मुझसे तुम
हो क्यों इतने
मायूस से तुम
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फ़िर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्देलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पा गई मैं तो तुझ में
अपना ठिकाना
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...
मुझे एक रचना भेजिये