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तुम्हारे लिए यह कविता / सौरीन्द्र बारिक
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तुम्हारे लिए है - यह कविता केवल तुम्हारे लिए।
और कोई पढ़े चाहे न पढ़े क्षण भर बाद वह रहे चाहे न रहे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता केवल तुम ही पढ़ लो यही सब कुछ है मेरे लिए।
आकाश को लेकर सागर कितना नीला हुआ बादल और कोहरे को चीर कर इस पहाड़ी ने सूर्य को कितना अपना लिया बेचारी ओस को इसकी क्या खबर वह केवल विन्दु भर आकाश,विन्दु भर सूर्य को लेकर जल उठती है क्षण भर के लिए और उसी ज्वलन में बिन्दु भर अनन्त को भी समेट लेती है बांध रखती है।
मेरी कविता केवल वेला पर पदचिन्ह है अस्थिर अनन्त की स्मृति-रेखा है उसे पढ़ने से किसे पाओगे तुम मुझे अथवा सम्पूर्ण विश्व ब्रह्मांड को ?
तुम्हारे लिए है - यह कविता केवल तुम्हारे लिए तुम ही पढ़ो यही काफी है।