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गर्म पकौड़ी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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गर्म पकौड़ी- ऐ गर्म पकौड़ी, तेल की भुनी नमक मिर्च की मिली, ऐ गर्म पकौड़ी ! मेरी जीभ जल गयी सिसकियां निकल रहीं, लार की बूंदें कितनी टपकीं, पर दाढ़ तले दबा ही रक्खा मैंने
कंजूस ने ज्यों कौड़ी, पहले तूने मुझ को खींचा, दिल ले कर फिर कपड़े-सा फींचा, अरी, तेरे लिए छोड़ी
बम्हन की पकाई मैंने घी की कचौड़ी।