भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात छोटी सी है पर हम आज तक समझे नही / सतपाल 'ख़याल'
Kavita Kosh से
Sat pal khyaal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 12 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: बात छोटी सी है पर हम आज तक समझे नही दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करत...)
बात छोटी सी है पर हम आज तक समझे नही दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं
सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं
हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े मे थे वो मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं
हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं
अब के है बारूद की बू चार -सू फैली हुई खौफ़ फैला हर जगह आसार कुछ अच्छे नहीं.
उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल' तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं