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रोज़नामचा / कैलाश वाजपेयी

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हड्डियाँ
उसकी भी तो उसी रंग की थीं
जैसी सभी की होती हैं
खून भी उसी रंग का
जिस रंग का सबका
होता है
तुमने अभी जिसे
गोली से मारा है
उसकी सिर्फ़ एक ही ग़लती थी
वह ग़्रीब
कातर तार-तार था

          सामूहिक से अलग
          झुका हुआ अपनी
          निजी प्रार्थना में
          पुलिस की शिनाख़्त से लगता है
          उसका नाम
          शायद फ़रीद था