भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोज़नामचा / कैलाश वाजपेयी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:17, 15 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश वाजपेयी |संग्रह=सूफ़ीनामा / कैलाश वाजपेय...)
हड्डियाँ
उसकी भी तो उसी रंग की थीं
जैसी सभी की होती हैं
खून भी उसी रंग का
जिस रंग का सबका
होता है
तुमने अभी जिसे
गोली से मारा है
उसकी सिर्फ़ एक ही ग़लती थी
वह ग़्रीब
कातर तार-तार था
सामूहिक से अलग
झुका हुआ अपनी
निजी प्रार्थना में
पुलिस की शिनाख़्त से लगता है
उसका नाम
शायद फ़रीद था