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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक / माखनलाल चतुर्वेदी

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कवि: माखनलाल चतुर्वेदी

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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!

प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में

जी का विश्व वसा दो मालिक!


रागें हैं लाचारी मेरी,

तानें बान तुम्हारी मेरी,

इन रंगीन मृतक खंडों पर,

अमृत-रस ढुलका दो मालिक!

मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!


जब मेरा अलगोजा बोले,

बल का मणिधर, स्र्ख रख डोले,

खोले श्याम-कुण्डली विष को

पथ-भूलना सिखा दो मालिक!

मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!


प्रहर-प्रहर की लहर-लहर पर

तुम लालिमा जगा दो मालिक!

मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!