भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजा के अगनवा चन्दन का विरवा /बुन्देली
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:21, 25 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }} <Poem> राजा का अ...)
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
राजा का अगनवा चन्दन का विरव
अछर बिछर ओखी डार हो
वो ही तरे पूरे बबुआ सोना संकल्पै
डारे लागे सुधर सुनार हो
गढ़ सोनरा तुम आंगन कंगन
गढ़ सुनरा सोलह शृंगार हो
इतना पहिन बेटी चौके में बैठी
भरीहि मोतियन मांग हो
सोनवा पहिन बेटी मण्डप में आई
आवे लागे मोतियन आसू हो
कि मोरी बेटी अन धन कम है
कि है रमैया वर छोट हो
कौन बात बेटी मण्डप में रोई
आवे लागे मोतियन आसू हो
नाही तो मोरे बाबुल धन अन कम है
नहीं है रमैया वर छोट हो
आज की रैन बाबुल तुम्हारा देशवा
कल परदेहिया के देश हो
राजा के अगनवा चन्दन के विरवा...।