भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जूते/ केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 23 मई 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: केदारनाथ सिंह Category:कविताएँ Category:केदारनाथ सिंह ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: केदारनाथ सिंह

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


सभा उठ गई

रह गए जूते

सूने हाल में दो चकित उदास

धूल भरे जूते

मुंह्बाये जूते जिनका वारिस

कोई नहीं था


चौकीदार आया

उसने देखा जूतों को

फिर वह देर तक खड़ा रहा

मुंहबाये जूतों के सामने

सोचता रहा--

कितना अजीब है

कि वक्ता चले गए

और सारी बहस के अंत में

रह गए जूते


उस सूने हाल में

जहां कहने को अब कुछ नहीं था

कितना कुछ कितना कुछ

कह गए जूते


( 'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से)