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मुझे फरक नहीं पड़ता / राजी सेठ

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कवयित्री: राजी सेठ

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मुझे फरक नहीं पड़ता

दी यदि तुमने मुझे ठंडी रोटी

भाई को गरम


फर्क नहीं पड़ता

खाने से फीके आम

बासी मिठाई

पहनने में उतरन


सदियों से जानती रही

रोटी में भूख

फलों में गंध-रस

कपड़ों में आवरण


मुझे फर्क नहीं पड़ता

पड़ेगा भाई को

जो खो देगा ऑंख

जानेगा नहीं क्या होती है असली बांट

जानेगा नहीं क्या पाने के लिये

इतना थरथराती है तुला हाथों में


जानेगा नहीं

क्या ले कर क्या खो रहा है अभागा