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मुबारक हो नया साल / नागार्जुन

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रचनाकार: नागार्जुन

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फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल

खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल

छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल

--अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !


हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...

अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !

पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...

--थामेंगे डालरी कमंद !


बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल

पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल

मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल

--अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !


(1967 में रचित)