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1
हे सुन्दरता
आख़िर
इस धरती पर
छोड़ी नहीं तूने अपनी मस्ती
बदमस्ती वह...
2
रात का पतंगा हूँ
अन्धा मैं
तेरी विकट नील आभा से
3
देखो...बर्फ़ वह कपासी
उड़ रही
धरती के संग-साथ
4
पतझड़ में उदास
वह बागीचा
डूबा है आकंठ
बारिश के प्यार में...
5
दुख तो यह है दोस्त !
कि अभिमान होता है पैदा
बुद्धि से पहले...
6
सुनो !
सुन रहे हो तुम
बारिश से डरकर
भाग रहे हैं पेड़...
7
अरे ! यह क्या कह रहे हो
देखो, बुद्धि बड़ख़ूब जानती है
प्यार के बारे में