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अन्न पचीसी के दोहे / नागार्जुन

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रचनाकार: नागार्जुन

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सीधे-सादे शब्द हैं, भाव बडे ही गूढ

अन्न-पचीसी घोख ले, अर्थ जान ले मूढ


कबिरा खडा बाज़ार में, लिया लुकाठी हाथ

बन्दा क्या घबरायेगा, जनता देगी साथ


छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट

मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट


आज गहन है भूख का, धुंधला है आकाश

कल अपनी सरकार का होगा पर्दाफ़ाश


नागार्जुन-मुख से कढे साखी के ये बोल

साथी को समझाइये रचना है अनमोल


अन्न-पचीसी मुख्तसर, लग करोड-करोड

सचमुच ही लग जाएगी आंख कान में होड


अन्न्ब्रह्म ही ब्रह्म है बाकी ब्रहम पिशाच

औघड मैथिल नागजी अर्जुन यही उवाच


१९७४ में लिखी गई