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जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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जीवन की इस कर्मभूमि में ,
ठीक नहीं है बैठे रहना ।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना ,अपनी कहना ।

सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना ।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना
[21जून,2009 ]