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निम्नलिखित कविताओं की आवश्यकता है:

  • निराशावादी (लेखक: हरिवंशराय बच्चन)
  • ना मैं सो रहा हूँ ना तुम सो रही हो, मगर बीच में यामिनी ढल रही है (लेखक: हरिवंशराय बच्चन)
  • hum karen rashtra aaradhan (lekhak: jai shankar prasad)
  • मैं तो वही खिलौना लूँगा (शब्द कुछ कुछ ऐसे हैं और लेखिका शायद सुभद्राकुमारी चौहान हैं) --रोहित द्वारा अनुरोधित --ललित कुमार




अनुरोधित गीत "हम करें राष्ट्र आराधन" को मैं नीचे लिख रहा हूँ। पाठक इस गीत के लेखक के नाम की पुष्टि करें। ---- ललित कुमार

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन

अन्तर से मुख से कृति से
निश्छल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन

हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन

हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने अतीत को पढ़ कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन

हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन

है याद हमें युग-युग की
जलती अनेक घटनायें
जो माँ के सेवा पथ पर
आयी बन कर विपदायें

हमनें अभिषेक किया था
जननी का अरि शोणित से
हमने श्रृंगार किया था
माता का अरि मुंडो से

हमने ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन

अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन दे कर
हम करें पुन: संस्थापन

हम करें पुन: संस्थापन
हम करें राष्ट्र आराधन

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन



भारत-भारती की इन कविताओं को जोड़ने का कष्ट करें।

-- अनुनाद


१। मानस भवन में आर्य जन

जिसकी उतारें आरती

भगवान भारतवर्ष में

गूँजे हमारी भारती|

हो भव्य भावोद्भाविनी

ये भारती हे भगवते

सीतापते, सीतापते

गीतामते, गीतामते।


२। हम कौन थे क्या हो गए हैं

और क्या होंगे अभी

आओ बिचारें आज मिल कर

ये समस्याएं सभी।


३। केवल पतंग विहंगमों में

जलचरों में नाव ही

बस भोजनार्थ चतुष्पदों में

चारपाई बच रही।


४। श्रीमान शिक्षा दें अगर

तो श्रीमती कहतीं यही

छेड़ो न लल्ला को हमारे

नौकरी करनी नहीं।

शिक्षे, तुम्हारा नाश हो

तुम नौकरी के हित बनी।

लो, मूर्खते जीवित रहो

रक्षक तुम्हारे हैं धनी।

---

अब तो उठो, हे बंधुओं! निज देश की जय बोल दो;

बनने लगें सब वस्तुएं, कल-कारखाने खोल दो।

जावे यहां से और कच्चा माल अब बाहर नहीं -

हो 'मेड इन' के बाद बस 'इण्डिया' ही सब कहीं।'

             भारत-भारती, भ.खण्ड 80, पृ. 154


श्री गोखले गांधी-सदृश नेता महा मतिमान है,

वक्ता विजय-घोषक हमारे श्री सुरेन्द्र समान है।

        भारत-भारती, भविष्य खण्ड 128, पृ.163