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ज्योति सत्ता का गीत / निर्मला जोशी

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तिमर के पाहुन किसी दिन आैर आकर भेट करना
इस समय मैं ज्योति को विस्तार देने में लगी हंू।

इस दिये से ही हृदय संसार
सदियों ---से ---प्रकाशित।
यह सुनिश्चित रोशनी होने
नहीं ---पाई ---विभाजित।

यह मुझे संभावना, लय आैर स्वर तक सौंप बैठा
इसलिए -मैं गीत को -आकार -देने -में लगी हंू।

तन तपाकर ही इसे यह देह
कंचन --की ---मिली --है।
बातियों --को -मुक्त मन से
संिध -नतर्न -की -मिली -है।

यह समय अंिधयार के अवसान का है, यह समझकर
जि़ंदगी -को -मैं -नया -आधार -देने -में -लगी -हंू।

दीप -माटी -के -तुम्हारे
नाम --की -आराधनाएं।
हो -गई -इतनी -सजल
जैसे कि हो संवेदनाएं।

इस अमावस में मनुज के पांव चलते थक न जायें
आस्थाआें -का -सकल -उपचार -देने -में -लगी हंू।

ज्योति निझर्र में नहाकर
धरा -आलोकित हुई -है।
रिश्मयों के साथ बंदनवार
भी -पुलकित --हुई ---है।

एक दीपक द्वार पर मैंने जलाया नाम जिसके
स्वस्ितकों का पुण्यमय अधिकार देने में लगी हंू।