भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कितना अकेला आज मैं / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 11:59, 25 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} कितना अकेला आज मैं! संघर्ष में टूट...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कितना अकेला आज मैं!


संघर्ष में टूटा हुआ,

दुर्भग्‍य से लूटा हुआ,

परिवार से छूटा हुआ, कितना अकेला आज मैं!

कितना अकेला आज मैं!


भटका हुआ संसार में,

अकुशल जगत व्‍यवहार में,

असफल सभी व्‍यापार में, कितना अकेला आज मैं!

कितना अकेला आज मैं!


खोया सभी विश्‍वास है,

भूला सभी उल्‍लास है,

कुछ खोजती हर साँस है, कितना अकेला आज मैं!

कितना अकेला आज मैं!