भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजाद / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:33, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैगम्बtर के एक शिष्य ने
पूछा, 'हजरत बंदे को शक
है आजाद कहां तक इंसा
दुनिया में,पाबंद कहां तक?'
'खड़े रहो!' बोले रसूल तब,
'अच्छा, पैर उठाओ उपर'
'जैस हुक्मा!' मुरीद सामने
खड़ा हो गया एक पैर पर!

'ठीक , दूसरा पैर उठाओ '
बोले हंस कर नबी फिर तुरत,
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
'यह तो नामुमकिन है हजरत'

'हो आजाद यहां तक, कहता
तुमसे एक पैर उठ उपर,
बंधे हुए दुनिया से, कहता
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!' -
पैगम्बसर का था यह उत्तर!