दीपावली / शिवप्रसाद जोशी
अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी
काट लूंगी तुम्हारी उगुंलियाँ
खा जाऊंगी तुम्हें
समझे तुम
अपने सिर से मेरा सिर न टकराओ
ये बताओ कब आओगे
कहाँ हो तुम
और ये हँस क्यों रहे हो बेकार में
तुमने एक उपहार भेजा अच्छा लगा
तुमने एक पोशाक भेजी अच्छी लगी
लेकिन तुम इतनी दूर क्यों हो
इतने पास हो और फ़ौरन क्यों नहीं चले आते
ये कम्प्यूटर तुम्हारा ही तो है
जहाज़ के टायर नहीं होते
और वे चलते हैं ज़मीन पर
मेरी गुड़िया का आज जन्मदिन है
गणेश को सारे लड्डू न खिलाओ माँ
मुझे भी खाना है
और अब बाबा से तो मैं नहीं करूंगी बात
बस यह कहकर हटती है
बेटी
पिता से इंटरनेट टेलीफ़ोनी करती हुई
एक अचरज और उलार में निहारती हुई
इतने क़रीब उस दुष्ट मनुष्य को
और जो है इतना दूर
मैं गई फुलझड़ी जलाने
मैं गई अनार फोड़ने
बाबा इनकी रंगतों में मेरा अफ़सोस देखना
मैं किससे कहूँ मन की बात
तुम्हें मैं छोड़ूंगी नहीं आना तुम।