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जसुमति दौरि लिये हरि कनियां / सूरदास

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राग गौरी


जसुमति दौरि लिये हरि कनियां।

"आजु गयौ मेरौ गाय चरावन, हौं बलि जाउं निछनियां॥

मो कारन कचू आन्यौ नाहीं बन फल तोरि नन्हैया।

तुमहिं मिलैं मैं अति सुख पायौ,मेरे कुंवर कन्हैया॥

कछुक खाहु जो भावै मोहन.' दैरी माखन रोटी।

सूरदास, प्रभु जीवहु जुग-जुग हरि-हलधर की जोटी॥


भावार्थ :- मेरे नन्हें-से लाल, अपनी मैया के लिए कुछ वन के फल तोड़कर नहीं लाये ? मैंने योंही कहा कन्हैया, तुझे पाकर मुझे क्या नहीं मिल गया। भूख तो लगी ही होगी, चल जो तुझे भावै सो खा ले। " दैरी माखन रोटी " सर्वस्व तो माखन रोटी ही है। वन-वन गाय चराने वाली यह हरि-हलधर की प्यारी जोड़ी जुग-जुग चिरंजीवी रहे।


शब्दार्थ :- कनियां = गोदी। मेरौ = मेरा लाल, ब्रजभाषा में सिर्फ मेरा और मेरी से ही पुत्र और पुत्री का बोध हो जाता है। निछनियां =पूरे तौर से। मो कारन =मेरे लिए नन्हैया = नन्हा-सा, छोटा-सा। जोटी =जोड़ी।