इन विटपवरों ने हे मरूत् ! मोदकरी, सुरभि सतत देके की सु-सेवा तुम्हारी ! व्यथित अब इन्हीं के वह्नि से आज देख ज्वलित कर रहे हो और भी क्यों विशेष।
इन विटपवरों ने हे मरूत् ! मोदकरी, सुरभि सतत देके की सु-सेवा तुम्हारी ! व्यथित अब इन्हीं के वह्नि से आज देख ज्वलित कर रहे हो और भी क्यों विशेष।