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छूट गए / अजित कुमार

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पथ ही नहीं, मित्र ।

पथ के जितने भी थे सम्बल

सब छूट गये ।

जैसे क्षण-दो-क्षण गाना

फूलों संग बातें करना,

यों ही कुछ भूले-भूले रह

ख़ुद

मन का ताप और क्लेश

सब कुछ हरना ।

आँखों में मुसकाना,

पैरों में गति के मृदु भाव

अपरिचित भरना

छूट गए, छूट गए,

सपने सब