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विधान / अजित कुमार

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प्यास तो ऐसी लगी थी-

क्या समन्दर,क्या सितारे

सभी को पी लूँ ,

कामना ऐसी जगी थी-

क्या हमारे, क्या तुम्हारे,

सभी क्षण जी लूँ

किन्तु विधि के उन निषेधों,

उन विरोधों को कहूँ क्या-

जो विवश करते :

प्रीति जो मन में रंगी थी-

तोड़ डालूँ बिन-विचारे,

होंठ को सी लूँ ।