भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय }}<poem> प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली मुझको कंच...)
प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली
मुझको कंचन हुई तुम्हारे चरणों की यह
धूली!
आई थी तो जाना भी था -
फिर भी आओगी, दुःख किसका?
एक बार जब दृष्टिकरों के पद चिह्नों की रेखा छू
ली!
वाक्य अर्थ का हो प्रत्याशी,
गीत शब्द का कब अभिलाषी?
अंतर में पराग सी छाई है स्मृतियों की आशा धूली!
प्राण तुम्हारी पदरज़ फूली!