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स्वप्न / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 17:00, 31 मार्च 2008 का अवतरण
धुएँ का काला शोर:
भाप के अग्निगर्भ बादल:
बिना ठोस रपटन में उगते, बढ़ते, फूलते
- अन्तहीन कुकुरमुत्ते,
न-कुछ की फाँक से झाँक-झाँक, झुक कर
- झपटने को बढ़ रहे भीमकाय कुत्ते।
अग्नि-गर्भ फैल कर सब लील लेता है।
केवल एक तेज—एक दीप्ति:
न उस का, न सपने का कोई ओर-छोर:
बिना चौंके पाता हूँ कि जाग गया हूँ।
भोर...