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धूल / अरविन्द अवस्थी

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कल तक
पैरों के नीचे
जीवन तलाशती धूल
जाग उठी
पाकर हवा का स्पर्श
चढ़ गई धरती से
आसमान तक
फैल गया
धूल का अपना संसार
बंद हो गई
घूरती आँखें
उसका सामना करने के
डर से