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कितने आज़ाद हैं वे लोग

जो रीठे के खोल में सूखी गुठली-सा

बज रहे हैं लगातार निर्द्वन्द्व

उन्हें छूएगी कौन हवा

उन्हें कहे कौन कि एक हाथ है बाहर

जो उन्हें बजाता है बार-बार


उन्हें कहे कौन की गति उनकी

उसी अदृश्य हाथ की गति है ।

मैं कहाँ हूँ उतना आज़ाद

मै उतना ही बँधा हूँ जितना आज़ाद

मैं गर्भ में पलते बच्चे-सा

बँधा हूँ

आज़ाद हूँ

मुझमें साँस बन रही है हर हवा ।