भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुमार विकल के नाम / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 18 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एन गिल |एक और दिन / अवतार एन गिल }} <poem> '''1''' भरे ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
भरे हुए मेले में
पिता की अंगुली से बंधे हुए
उस बच्चे ने
चुपके से हाथ छुड़ाया
जेब का सिक्का
जादुई बक्से में डाला
और....बाइस्कोप देखते-देखते
मेला हो गया

2

बचपन में
एक बार उसने
माँ से ज़िद की थी
'बाईस्कोप देखूँगा'
निरुपमा दत्त
देखना तो ज़रा...
होगा, यहीं-कहीं
तीजनबाई की नाचती छाया तले
तमाशा देखता कुमार विकल

3
चाम के दाम बारे शहर में
मुहब्बत का रंग तलाशता
एक बालक
दर्पण में झाँकते ही
डर गया
दोस्त ने आते ही कहा_
सुना? विकल मर गया!

4
चम्बा की धूप को
पहाड़ी गाय कहने वाला बच्चा
रूठ कर
सो गया
सपनों में
धूप संग खेलता
परछाई हो गया!