भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संसद के गलियारे / अश्वघोष

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:53, 13 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह= }} <Poem> चहल-पहल से भरे हुए हैं संस...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चहल-पहल से
भरे हुए हैं
संसद के गलियारे

एक दूसरे को
जा-जाकर सांसद कथा सुनाएँ,
राजनीति के
दाँव पेच में
डूबी क्षेत्र कथाएँ
छूट रहे हैं
कहकहों के शानदार फव्वारे

जनता के दुखदर्द
जरा भी नहीं किसी को भाते,
तोड चुके हैं
सब गाँधी से
अपने रिश्ते-नाते
दीवारों पर लिखवाते हैं
खुशहाली के नारे

हिंसा को
हथियार बनाकर
अपना राज्य चलाएँ
घर से लेकर खेतों तक ये
बस दहशत फैलाएँ
मानवता का खून करें ये
खुले आम हत्यारे