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कौन नहीं जानता / असद ज़ैदी

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कौन नहीं जानता

अयोध्या में सभी कुछ

काल्पनिक है


वह मस्जिद जिसे

ढहाया गया

वह काल्पनिक थी


वे तस्वीरें

किसी मशहूर फ़िल्म

के लिए थीं


वह एक दोपहर की झपकी थी

एक अस्त-व्यस्त सा

स्वप्न था

या किसी का ख़र्राटा


जिसकी आवाज़ के पर्दे में मेहराब के चटकने की

ख़फ़ीफ़ सी आवाज़ धुल गयी

कुछ गुंबदें धीमी गति से गिरती चली गईं

काले-सफ़ेद धुंधलके में।