Last modified on 3 सितम्बर 2008, at 10:18

माँ की तस्वीर / इला कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 3 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला कुमार |संग्रह=ठहरा हुआ एहसास / इला कुमार }} मम्मी मा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मम्मी माँ मम्मा अम्मा, मइया माई

जब जैसे पुकारा, माँ अवश्य आई

कहा सब ने माँ ऐसी होती है माँ वैसी होती है

पर सच में, माँ कैसी होती है

सुबह सवेरे, नहा धोकर, ठाकुर को दिया जलातीं

हमारी शरारतों पर भी थोड़ा मुस्काती

फिर से झुक कर पाठ के श्लोक उच्चारती

माँ की यह तस्वीर कितनी पवित्र होती है

शाम ढले, चूल्हा की लपकती कौंध से जगमगाता मुखड़ा

सने हाथों से अगली रोटी के, आटे का टुकड़ा

गीली हथेली की पीठ से, उलझे बालों की लट को सरकाती

माँ की यह भंगिमा क्या ग़रीब होती है?

रोज-रोज, पहले मिनिट में पराँठा सेंकती

दूसरे क्षण, नाश्ते की तश्तरी भरती

तेज क़दमों से, सारे घर में, फिरकनी सी घूमती

साथ-साथ, अधखाई रोटी, जल्दी-जल्दी अपने मुँह में ठूसती

माँ की यह तस्वीर क्या इतनी व्यस्त होती है?

इन सब से परे, हमारे मानस में रची बसी

सभी संवेदनाओं के कण-कण में घुली मिली

हमारे व्यक्तित्व के रेशे से हर पल झाँकती

हम सब की माँ, कुछ कुछ ऐसी ही होती है।