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कपास / इला प्रसाद

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आसमान की नीली चादर पर

बादलों की कपास धुनकर

किसने ढेरियाँ लगाई हैं ?

 

मैंने आँखों ही आँखों में

माप लिया पूरा आकाश

रूई के गोले उड़ते थे

यत्र-तत्र-सर्वत्र

नयनाभिराम था दृश्य

 

मैं सपनों के सिक्के लिए

बैठी रही देर तक

बटोरने को बेचैन

बादलों की कपास

झोली भर

 

लेकिन कोई रास्ता

जो आसमान को खुलता हो

नज़र नहीं आया........