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हमदर्द / फ़राज़

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ऐ दिल उन आँखों पर न जा
जिनमें वफ़ूरे-रंज<ref>दु:खों की बहुतायत</ref>
से कुछ देर को तेरे लिए
आँसू अगर लहरा गए

ये चन्द लम्हों की चमक
जो तुझको पागल कर गई
इन जुगनुओं के नूर<ref></ref>से
चमकी है कब वो ज़िन्दगी
जिसके मुक़द्दर<ref></ref>में रही
सुबहे-तलब <ref></ref>से तीरगी<ref></ref>


किस सोच में गुमसुम है तू
ऐ बेख़बर! नादाँ<ref></ref>न बन
तेरी फ़सुर्दा रूह<ref>उदास आत्मा</ref>को
चाहत के काँटों की तलब
और उसके दामन में फ़क़त<ref>केवल</ref>
हमदर्दियों के फूल हैं

शब्दार्थ
<references/>